कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के मोदी सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती


 


 


नई दिल्ली। लॉकडाउन के तहत केंद्र सरकार ने निजी पर S कंपनियों को आदेश दिया है कि वह कर्मचारियों को पूरा वेतन दें. अब सुप्रीम कोर्ट में इसी आदेश को चुनौती दी गई है. लुधियाना हैं न्ड टूल्स एसोसिएशन की तरफ से केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की गई है. इस याचिका में कहा गया है कि डिजास्टर मैनेजमेंट कानून के तहत केन्द्र सरकार द्वारा निजी प्रतिष्ठानों को परा वेतन देने का आदेश जारी करना गलत है. इससे संविधान में मिले व्यवसाय करने और बराबरी के अधिकारों का हनन होता है.पिछले पर H AR हफ्ते महाराष्ट्र की टेक्सटाइल कंपनी ने भी ऐसी ही याचिका दाखिल की थी. हालांकि महाराष्ट की ट्रेड यूनियन ने इस मामले कहा था कि कर्मचारियों का अधिकार है कि उन्हें पूरा वेतन दिया जाए.लुधियाना हैंन्ड टूल्स एसोसिएशन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई है उसमें केन्द्र सरकार के 29 मार्च के आदेश को रद्द करने की मांग की गई है.इस याचिका में पूछा गया है कि क्याडिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 केन्द्र सरकार को यह आदेश देने का अधिकार देता है कि वह निजी प्रतिष्ठानों को आपदा के दौरान अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का आदेश दे, जबकि ऐसी ही स्थिति पर इंडस्ट्रियल डिसप्यूट एक्ट 1948 में 50 फीसद वेतन देने का प्रावधान किया गया है.बता दें, 29 मार्च को सरकार ने फैसला दिया था कि लॉकडाउन के दौरान भी कर्मचारियों AR -को पूरा वेचन दिया जाएगा. इसके एक दिन बाद यानी 30 मार्च को श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सभी क्षेत्रीय लेबर कमिश्नर को एडवाइजरी जारी की थी कि लॉकडाउन के कारण बंद हो गए प्रतिष्ठानों के सभी कर्मचारी इस दौरान ड्यूटी पर माने जाएगे. सभी निजी और सरकारी प्रतिष्ठानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने यहां के कर्मचारियों को न तो नौकरी से निकालेंगे और न ही उनका वेतन काटेंगे